Monday, 6 April 2009

(3) Hindi poem

दे सकते हो तो जीने की बजे दे दो,
जीते तो हम भी है, हमे मालुम है!
मुजे मेरे ही होने क़ा अहेसास दे दो,
जखम एक होते तो हमभी भर लेते!
जखम पे जखम को हम केसे सहे?
ये मेरी तनहाई तो मेरी अपनी ही है,
इसमे सामिल न कोइ मेरे सिवा है!
शिल्पा प्रजापति...

3 comments:

  1. जखम एक होते तो हमभी भर लेते!
    जखम पे जखम को हम केसे सहे?.... very touching lines

    Good one..shilpa...u r good in hindi too

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  2. just super... u write well in hindi...

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