Saturday 28 March 2009

(2) Hindi poem

ये कोन से मुकाम पे लाकर छोडा,
न कोई भी खुशी न कोई भी गम!
नकोई उममीद या शिकवा-शिकायत,
न तो कोई भी हक या अधिकार है!
मन से तो हर बार दुवा ही निकले!
है ईश्व्वर गमको कहदो हमे छुकर रहे!
कोईभी हवाका झोका उनकी तरफ जाई,
बस ईन की खुशिया ही हो सायद जो,
हमारे जीनेकी बज बन कर रह जाए!
कोई नेक काम इन हाथो से हो जाए,
तो समजेकी तेरी मुलाकातभी हो गई!
चॉद भबे ही हमारा ना हो तो कयॉ!
दुरही सही रोशनी तो हमपर भी होगी!
शिल्पा प्रजापति...

1 comment:

  1. चॉद भबे ही हमारा ना हो तो कयॉ!
    दुरही सही रोशनी तो हमपर भी होगी...

    kyaa baat kahi he..
    aafrin...der..

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