ये कोन से मुकाम पे लाकर छोडा,
न कोई भी खुशी न कोई भी गम!
नकोई उममीद या शिकवा-शिकायत,
न तो कोई भी हक या अधिकार है!
मन से तो हर बार दुवा ही निकले!
है ईश्व्वर गमको कहदो हमे छुकर रहे!
कोईभी हवाका झोका उनकी तरफ जाई,
बस ईन की खुशिया ही हो सायद जो,
हमारे जीनेकी बज बन कर रह जाए!
कोई नेक काम इन हाथो से हो जाए,
तो समजेकी तेरी मुलाकातभी हो गई!
चॉद भबे ही हमारा ना हो तो कयॉ!
दुरही सही रोशनी तो हमपर भी होगी!
शिल्पा प्रजापति...
Saturday, 28 March 2009
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चॉद भबे ही हमारा ना हो तो कयॉ!
ReplyDeleteदुरही सही रोशनी तो हमपर भी होगी...
kyaa baat kahi he..
aafrin...der..